बचपन का आँगन
बचपन का वो आँगन याद आता है जब भी
मन का एक कोना खाली रहता है अब भी ।
भीग जाते नैना उन एहसास से अब भी
वो बाबुल का दुलार याद आता है जब भी ।।
सच वो बचपन का आँगन…
जब किलकारी भरती थी वो …
वो नन्हें - नन्हें पैरों में जब पायल पहन
थिरकती थी वो …
बाबुल के कांधे पर झूलकर...
सारा आकाश छू लेती थी वो ...।
कितने सुहाने वो दिन थे न …!!
बेटी जो घर की रौनक होती है…
चेहरे पर एक मुस्कान ले आती है …
क्यों पल में पराई हो जाती है ?
एक हमसफ़र मिल जाने से क्या?
बेटियाँ बाबुल से दूर हो जाती हैं …!!
मन के किसी कोने में वो हिस्सा ...
खाली रहता है हमेशा …!!
बेटियाँ जब माँ-बाप से दूर हो जाती हैं …!!
अपनी खुशी माँ- बाबा से बाँट लेती हैं …
मगर अपने दुःखों को...
अपनी पलकों की नमीं में ही छुपा लेती हैं ।
काश…. बेटियों का एक अपना जहाँ होता …
काश ..उनके मन का सा कोई सपना होता …!!!
उसका भी कोई एक अपना जहाँ होता ।
रेनू सिंघल
लखनऊ (उत्तर प्रदेश )