राम सबके हैं !!!
ना किसी की विजय, ना किसी की पराजय...
अंततः १३५ साल तक ३ अदालतों में चले इस २०० साल पुराने विवाद के मुक़दमे का बहुप्रतीक्षित निर्णय आ ही गया।सन १५२८ से चले इस संघर्ष को विराम मिला। यदि दोनो पक्ष के समर्थक इस निर्णय से प्रसन्न है या दुःखी हैं तो संभवतः दोनो को पुनर्विचार की आवश्यकता है क्यूँकि इस निर्णय में ना ही कोई जीता है ना कोई हारा है।अदालत में जाते ही यह मामला दोनो ही पक्ष हार चुके थे।पूरी सुनवाई इन्ही दोनो हारे हुए पक्षों की थी जो वास्तव में दो पक्ष भी नहीं हैं। राम किस प्रकार एक पक्ष के हुए जब यह देश सिर्फ़ एक पक्ष का नहीं है ? क्या दोनो पक्षों के लोगों ने अलग अलग देश में जन्म लिया था ? क्या मंदिर दोनो पक्षों के पूर्वज जो एक थे उन्होने नहीं बनाया था ? हाँ इतिहास से बेख़बरी और ग़लत शिक्षा ज़रूर अलग पूर्वज और इस देश से अलग पहचान को मज़बूती से वहम की स्थिति देती है। और वो जिनकी पहचान वास्तव में इस देश से अलग थी उसका उद्देश्य साफ़ था- पहचान बदलना,ग़ुलाम बनाना,राज करना,संस्कृति के प्रतीकों और मंदिरो को नेस्तोनाबूद करना, लूट करना, क़त्ल-ए-आम मचाना। उनकी तोपों, तलवारों, बंदूक़ों के सामने जो शहीद हो रहे थे वो दोनो ही थे। उनके चाबुक और कोड़े दोनो की ही पीठ का ख़ून पीते और अमानवीयता के निशान छोड़ते, बस कुछ समय बाद दोनो में से कुछ के चेहरों पर बदली हुई पहचान चिपक गई।
दोनो ही इस देश के घायल अतीत के ऐसे किरदार हैं जो कभी अलग नहीं थे।सदियों तक अपमानित,बेघर,भूखे, अत्याचारों के शिकार पुरखे दोनो ही पक्षों के थे। कुछ को मजबूरी में अपने नाम और पहचान बदलने पड़े और कुछ नाम या पहचान ना बदले इसलिये भागते रहे,पलायन करते रहे।
ये बदली हुई पहचान सिर्फ़ एक नाम है ये दोनो ही पक्षों और उनके समर्थकों को समझने की आवश्यकता है। दोनो की ही धमनियों में वही रक्त बहता है।
जो बाहरी थे,उन्होंने कभी यह नहीं माना कि दोनो पक्ष एक हैं और जो उन बाहरी लोगों के प्रभाव में ये मानते थे कि दोनो अलग हैं और दोनो के बीच कोई मेल जोल नहीं हो सकता,उन्होंने तो अपनी अलग हो चुकी पहचान के भ्रम में अपनी सीमायें भी अलग बना लीं। इन अलग सीमाओं साथ अलग मुल्क की माँग करने वाला भी इसी बदले हुए नाम और पहचान का ही व्यक्ति था, वो भी बमुश्किल २ पीढ़ी पहले बदले हुए नाम और पहचान। किसी का ६ पीढ़ी पहले बदला,किसी का ८,किसी का ४।
किसने अलग किया? क्यूँ अलग किया? कैसे अलग किया? ये सवाल अंतरात्मा से जरूर पूछने चाहिये।
राम और अयोध्या भी इसी बदली पहचान के भटकाव का शिकार हो गए। इसी देश की धरती में दोनो पक्षों की पीढ़ियाँ पली हैं।जो भी सुख-दुःख भोगा-भुगता है वह सब हमारा है और आपसी प्रेम या वैमनस्य में जो भी भोगेंगे या भुगतेंगे वह सब भी हमारा ही होगा।
समय है किसी भी प्रकार की थोपी हुई पहचान भूल कर इस देश को, इस देश की प्रगति को अपनी नई पहचान बनाने का क्यूँकि आज नाम या पहचान भले ही अलग हो, यह देश दोनो के ही, हम सबके पूर्वजों का था, अयोध्या भी हमारे के पूर्वजों की थी और राम भी हमारे पूर्वजों के थे ।
अनुराधा शुक्ला
सतना मध्यप्रदेश