कुछ प्रश्न अनुत्तरित क्यों है ?
अरे भाई ! आप ही बताइये .......
महिलाएं रात 9 बजे के बाद घर से बाहर निकलती ही क्यूँ हैं ?
लड़कियां छोटे कपड़े पहनती ही क्यूँ हैं ?
चाउमीन-पिज्जा खाती ही क्यूँ हैं ?
हंस के बोलती-बताती ही क्यूँ हैं ?
लड़कों से दोस्ती करती ही क्यूँ हैं ?
पाश्चात्य सभ्यता के रंग मे रंगती ही क्यूँ हैं ?
आप कभी कॉफी पीने क्यूँ नहीं चलतीं ?
कभी कहीं बाहर क्यूँ नहीं मिलतीं ?
नारी तो पैर की जुत्ती है ?
मोहल्ले मे आई नई ब्युटि है ?
भाई साहब !
जो लड़की घर से बाहर रह रही है वो शुद्ध कैसे होगी ?
संस्कारों वाली उसमे फेहरिस्त कैसे होगी ?
कमाती कितना भी हो पर घर का काम जानती है या नहीं ?
अरे ! हमने बहुत खर्चा किया है अपने बेटे कि पढ़ाई पर ,आप बताइये कितना देंगे वरना रिश्तों की कोई कमी है नहीं?
रंग थोड़ा गेंहुआ है गोरा नहीं ?
ज़बान कम चलाओ, तुम छोरी हो छोरा नहीं ?
क्यूँ इतना पढ़ाएँ-लिखाएँ शादी के बाद तो पराए घर ही जाना है ।
अजी बेटों से वंश बढ़ता है , बेटी से तो बस सिर ही झुकना है ।
बेटा होता तो दावत भरपूर , बेटी हो तो लड्डू मोतीचूर ।
अरे लड़की तो छाती पे मूंग दाल है , बेटा दिलाता जगत फेरे से पार है ।
बेटी के सिर पर परिवार की लाज सम्हालने का भार है, बेटा जो भी करे वो तो उसका अधिकार है ।
ऐसे कई सारे मौलिक प्रश्न और जवाबदेह उत्तर हैं जो कुछेक तथाकथित रसूखदार अथवा सामाजिक तत्व गाहे-बगाहे ही पूछ बैठते हैं हम सभी से या समझाइशों मे परोस दिये जाते हैं हमे , जब उनसे जवाब मांगा जाता है एक छोटे से सवाल का कि आख़िर महिलाओं के साथ ऐसा क्यूँ है ?
तो हम बस यही कहना चाहते हैं की......
महोदय और श्रीमान !
ज़रा फरमाइएगा ध्यान ।
कुछ सवाल अनुत्तरित होते हैं , क्योंकि जन्मे कहीं न कहीं उस कोख ने ही आप जैसे पाप हैं जिन्हे हम आज भी ढोते हैं ।
काश हमने आप को जो जिम्मेवारी दी थी आप उसे निभा पाते । शारीरिक बलिष्ठता को सही जगह दिखा पाते ।
अब हम आपसे बराबरी का अधिकार नहीं चाहते ,,,,,
क्यूंकि हम आपके स्तर तक गिर नहीं पाते तो बराबरी कैसी ? ₹
सम्मान की आशा करते हैं किंतु कोई बात नहीं , ज़रूरी तो नहीं की हमे आपसे सदैव सही अल्फ़ाज़ ही मिलें किन्तु यह बात अवश्य है की अगर सही हक़ न भी मिले तो भी हम अपने अस्तित्व को निखारते हुये अनवरत बढ़ते जाएंगे और प्रश्नों की अब परवाह नहीं न ही आपकी कुत्सित वैचारिक विवेचना की क्यूंकि कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रहते हैं जैसे हम सभी का एक प्रश्न कि आप हमारे लिए इतने फिक्रमंद ही क्यों हैं ?
……....
उत्तर नहीं है तो फ़िर...
“ श्रीमान ! आप इतना मलिन विचार करते ही क्यूँ हैं ?
बेमानी सी दलीलें दलते ही क्यूँ हैं ?"
जानते हैं .....
"आपसे हम कभी सार्थक उत्तर नहीं पायेंगे ?
आपकी कमतरी दिखाते हमारे उक्त सारे ही प्रश्न सदा अनुत्तरित ही रह जायेंगे ? ”
क्योंकि अब सार्थक उत्तर अपेक्षित है....
स्मृति तिवारी
सतना