आधुनिक दिवाली और पटाखों से प्रदूषित पर्यावरण
त्योहारों से सजे रहने वाले इस देश में दशक पूर्व से ही देखते आये है यहाँ हर वर्ग समुदाय के लोग अपनी संस्कृति एवं रिवाज के अनुसार अपने त्योहारों को हर्षोल्लास के साथ मिल जुल कर भाई चार के साथ मनाने की परंपरा रही है लेकिन आधुनिक युग के इस दौर में हम अपनी परंपराओं और रिवाजों को भूलकर नये आधुनिक युग के प्रथम चरण में कदम रख चुके है" आज के दौर की बात करे तो त्योहारो की महत्वता तो है लेकिन रिवाज़ो में काफी हद तक बदलाव देखने को मिल रहा है "फिलहाल अभी दिवाली का त्योहार सामने है दिवाली के दिन आतिशबाजी पटाखों का इस कदर बाजार सजता है चारो तरफ कानो में सिर्फ पटाखों की गूँज ही सुनाई पडती है" ये स्वभाविक भी है त्योहार में और खास कर दिवाली में पटाखें की गूँज के बिना दिवाली सूनी है "दिल्ली जैसे बडे बडे नगरो महानगरो में देखा जाये तो दिवाली के बाद धुंऐ की चादर आसमान में इस कदर फैल जाती है जो हमारे स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है" ये अपने आप मे एक चिंता का विषय है साथ ही हमारे द्वारा दिवाली में एक ऐसी खरीद दारी का हुजूम दिखाई पड़ता जो कही न कही हमारे लघु कुटीर उद्योग पीछे हो रहे है एवं चाइना उपकरण पर्यावरण के लिये हमारे स्वास्थ के लिये घातक सिध्द हो रहे है"साथ ही त्योहारो में प्लास्टिक की थैली का भी उपयोग भर पूर्ण रहता था लेकिन वर्तमान सरकार ने प्लास्टिक थैली पर रोक लगा कर सराहनीय कार्य किया है " प्लास्टिक मिट्टी के उपजाऊपन को नुकसान पहुचता है' त्योहारो की महत्वता के साथ साथ पर्यावरण को ध्यान रखते हुये भी हम दिवाली के त्योहार जैसे और भी त्योहारो को बडी सहजता एवं उल्लास के साथ बिना किसी नुकसान के मना सकते है" अगर चाहे तो मिट्टी के दीपक एवं एलईडी स्ट्रिप खरीद सकते है जो उचित पर्यावरण के अनुकूल है " वायु प्रदूषण को ध्यान रखते हुऐ पटाखों से दूरी बनाना भी बेहतर होगा दिवाली खुशियों और उल्लास का त्यौहार है इस दिवाली पर फूड वेस्टेज को कम करने में मदद कर पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकते हैं साथ ही अगर गरीब असहाय लोगों की मदद करें तो दिवाली खास होगी ही साथ ही आसपास के माहौल को भी खुशनुमा बना देगा हमारा एक छोटा प्रयास" आधुनिक ढंग से दिवाली मनाने से पहले बहुत कुछ सोचने समझने की जरूरत है पटाखों की धुएं से से फेफड़ों में सूजन आ सकती है जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और हालात यहां तक भी पहुंच सकते हैं की ऑर्गन फेलियर जैसे मौत तक हो सकती है ऐसे में धुंऐ से बचने एवं ज्यादा पटाखों से दूरी बनाना ही उचित होगा अधिक पटाखों की धुएं से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है जब पटाखों से निकलने वाला धुआं सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में भी रुकावट आने लगती है दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार भी हो सकता है 2017 में भी तीन बच्चों की ओर से पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध की याचिका दायर की गई थी याचिका में कहा गया था कि इन बच्चों के फेफडे दिवाली में दिल्ली के प्रदूषण के कारण ठीक से विकसित नहीं हो सके वहीं 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया था सर्वोच्च अदालत ने कुछ शर्तों के साथ पटाखों की बिक्री को मंजूरी दी थी साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पटाखे फोड़ने के लिए समय सारणी निर्धारित कर दी थी कुछ लोगों का मानना है की दीए जलाकर आतिशबाजी करने से ही दिवाली का त्यौहार पूर्ण होगा अलग-अलग राज्यों की संस्कृति अलग है लेकिन होली और दिवाली जैसे त्यौहार सभी को एक साथ सूत्र मैं बांध देते हैं"
दशक पूर्व में दिवाली पर किए जाने वाले रिवाज परंपराओं की बात करें तो """""""""
आधुनिक दिवाली के पूर्व लोग मिलजुलकर खुशी-खुशी मिट्टी के दिऐ जलाकर लक्ष्मी गणेश पूजन कर एक दूसरे को मिठाई खिला कर अभिवादन करते नजर आते थे अलग-अलग समाज के लोग अपने अपने अंदाज में अपने अपने रिवाजों के अनुसार दिवाली मनाते थे जैसे कायस्थ समाज में कलम दवाद की पूजा करते थे " बंगीय समाज में होती है काली की पूजा " जैन समाज महावीर स्वामी को लड्डू चढ़ाते" सिख समाज बंदी छोड़ दिवस मनाते थे अग्रवाल समाज में भी बहीखाता की पूजा करने की परंपरा थी" पर्वतीय समाज में ऐंपड की परंपरा का विधान है" महाराष्ट्र समाज के लोग गाय बछड़े की पूजा करते थे" आधुनिक युग के दौर में हमारे पुराणों रिवाज़ो की परंपरा विलुप्त सी होती जा रही है त्योहारो की पुराणिक कथायें लोग भूल कर अपने अंदाज में मगरूर समाज के लोग त्योहारो को मनाने में जुटे रहते है"उन्हें कोई मतलब नही रहता पुराणिक परम्पराओ से और ना ही कोई चिंता है अपने आस पास के होने वाले प्रदूषण और दूसित पर्यवारण से" ये बात केवल हिन्दू समाज के लोगो तक नही है हर धर्म के लोग अपने त्योहारो में इस कदर वातावरण एवं पर्यावरण को प्रदूषित करते है जिसका खामियाजा हम सबके सामने रहता है "5जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है वैश्विक स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण की बात करे तो अकेले दूषित हवा के कारण प्रति वर्ष भारत मे करीब 12लाख मौत के आंकड़े सामने आये" उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदूषण के अनुकूल ध्यान रखते हुये एवं कुटीर लघु उद्योगों को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है जिसमे चाइना बाजार का बहिस्कार तो होगा साथ मे दीपोत्सव कार्यक्रम में दिवाली में मिट्टी के 51000 दिये जलाये जायेगे भला अब ऐसी दिवाली कहाँ देखने को मिलती पर्यावरण के अनूकूल इस दिवाली में आसमान में उड़ने वाले पशु पंक्षी भी अपने ठिकानों पर टिके रहेंगे नही कोई मौत का कारण होगा शुद्ध वातावरण के साथ प्रसन्न होकर हम भी हिन्दू रीत रिवाज़ो के साथ प्रदूषण को कम कर के दिवाली के त्यौहार को मनाये मिट्टी के दिये जलाये ताकि वे गरीब जो मिट्टी के बाजार सजाये बैठे हैं उनके घरों में भी खुशियो की दिवाली के दिये जल सके "
लेखक
घनश्याम त्रिपाठी आमा, सतना