अपने ही देश मे बापू क्यो अपमानित ????
क्रांति 1857 - प्रायोजित किया गया नाना साहेब पेशवा के द्वारा 30 मई को पूरे भारत में होना था क्रांति वो भी सशस्त्र , मगर वक्त को मंजूर नहीं था और मंगल पाण्डेय ने जल्दीबाजी दिखा दी वक़्त से पहले स्वतः स्फुरित आन्दोलन हुआ और दबा दिया गया क्योंकि कोई नेता न मिला इसे । जिसे नाना साहेब पेशवा को नेतृत्व करना था , और हाथ लगी असफलता!!!
भले ही मंगल पाण्डेय महान क्रांतिकारी थे , मगर उनकी जल्दीबाजी के इस
निर्णय ने भारत को आजाद होने से रोक दिया, संगठन से हट कर चलने का यही अंजाम होता है|
वो हर देश जो प्रगतिशील हैं, जिन्होंने अपने नेता की हर बात मानी , सही-गलत सब में साथ दिया , और अंत में विजय हुई, जैसे क्यूबा के फिदेल कास्त्रो|
मगर भारत में एक गाँधी के विरोधी भी बने और समर्थक भी , आपस की लड़ाई ही मची रही , किसी का कोई मत था , और किसी का कोई और..........
गांधीजी को ठीक से पढ़िये और समझिए। वो कोई नेता नहीं थे और न ही उन्होंने किसी पद की कामना की, न कोई लालच। चाहते तो वो भी अंग्रेजो की नौकरी कर चैेन की बंसी बजा सकते थे मगर एक धोती में जीवन निकाला, हम लोगों की आजादी के लिए करोड़ों लोग थे उनकी अर्थी के पीछे। वो सब गलत थे क्या ????????
गांधीजी को पता था कि बिना ताकत और हथियार के अंग्रेजों से हिंसा के दम पर भिड़ जाना मतलब आत्महत्या करना , और एक बार हिंसक आन्दोलन अंग्रेजों ने कुचल दिया तो भारतीयों का मनोबल हमेशा की तरह १०-२० साल के लिए फिर से गिर जायेगा , इसीलिए गांधीजी अहिंसक आन्दोलन के पक्ष में थे , क्योंकि यही अंग्रेजों को हिला सकता था|
वरना गांधीजी से पहले भी कई हिंसक आन्दोलन हो चुके थे, सब दबा दिए गए और मनोबल ऐसे टूटा लोगों का कि २०-३० बरस तक आन्दोलन के नाम से डरते रहे लोग, और लोगों ने ये मान लिया था कि अंग्रेजों को सत्ता से उखाड़ना नामुमकिन है|
तिलक, जो गांधीजी के गुरु थे उनके बाद खुद गांधीजी ने लोगो में असहयोग आन्दोलन के द्वारा आज़ादी की आशा का दीप जलाया |
लोग समझ गए हमेशा की तरह दबा दिए जाने वाले हिंसक आन्दोलन का भी विकल्प है , अहिंसक आन्दोलन , बहिष्कार , अवज्ञा|
गांधीजी कहते थे जो कानून तुम्हें बांधता है ,तो किसने कहा तुम उन्हें मानो , सब मिलके बहिष्कार करो , दंड की चिंता मत करो , अहिंसा से आन्दोलन चलाना है ताकि कम से कम जन-माल की हानी हो और लोगों का मनोबल न टूटे|
"अक्सर ये बात कही जाती है कि गांधीजी ने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी से क्यों नहीं बचाया?"
गांधीजी जानते थे अगर वे ऐसा करते तो उनकी तो लोकप्रियता और भी बढ़ जाती(बजाये घटने के जैसा की लोग सोचते हैं की गाँधी को जलन थी भगत सिंह की लोकप्रियता से )और सारे भगत सिंह के समर्थक गांधीजी के समर्थक हो जाते, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया|
तो अब एक बात समझनी है की आखिर गांधीजी ने ऐसा क्यों नहीं किया?
गाँधी जी के आन्दोलन की नींव ही अहिंसा पर टिकी थी, वो अगर भगत सिंह का समर्थन करते तो वह उनके आन्दोलन के नियम के खिलाफ था| इतना बड़ा आन्दोलन कभी न परिवर्तित होने वाले कठोर नियम से ही चलाया जा सकता है|
जब चौरी चौरा कांड में हिंसा हुई तो गाँधी जी ने आन्दोलन वापस लिया था इसी नियम को बरक़रार रखने के लिए| तो इस बार गांधीजी अगर अपना नियम तोड़ देेते तो लोगों को बहाना मिलता हिंसा करने का और फिर पूरा आन्दोलन गाँधी के आउट ऑफ़ कण्ट्रोल हो जाता और ऐसे नेता के कण्ट्रोल के बिना , दिशाहीन आन्दोलन का जो परिणाम होता है वो हम 1857 के क्रांति को पढ़कर जान सकतें हैं|
हम सोचतें है गांधीजी हिंसा के खिलाफ क्यों थे?
उस समय की स्थिति लगभग वैसी ही थी जैसी आज की। वही पुलिस, वही कलेक्टर, सब वही, अमूमन कमोवेश आज वही व्यवस्था है बस सत्ता भारतीयों के हाथ में है|
तो क्या आज इतने लोगों को हिंसा के नाम पर संगठित किया जा सकता है? ये हम अन्ना के आन्दोलन से अनुभव ले सकते हैं, यही स्थिति उस समय भी थी|
गांधीजी का उद्देश्य भारत का बंटवारा कतई न था वो ये कहते थे की बंटवारा मेरी लाश पर होगा , मगर वक्त के आगे अगर गांधीजी लाचार हो गए तो क्या हम उनको गाली दें!
गांधीजी ने कहा था - "अंग्रेज भारत से जायेंगे मगर लड़ाई खत्म नहीं होगी, ये तब तक जारी रहेगी जब तक भारत के अंतिम चहरे पे मुस्कान नहीं आ जाती|"
गांधीजी ने भगत सिंह ,चन्द्र शेखर आजाद ,राजगुरु ,सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों की तारीफ ही की है , कि ये वो महान लोग हैं जिन्होंने मृत्यु पर भी विजय पाई है|
मैं जितनी इज्ज़त गांधी जी की करता हूँ उतनी ही इज्ज़त महान क्रांतिकारी भगत सिंह की करता हूँ|
शायद गांधीजी के जिन्दा होने पर भारत की सम्पन्न और खुशहाल रूप रेखा होने पर लोगों को पता चल पता|
गांधीजी के मारने के लोग जितने फायदे गिनाते हैं वो कभी हुए ही नहीं उल्टा नुकसान कितना हुआ , वो अगर गाँधी की नीतियों से जो रूबरू है उसे पता है|
भारत की सभी समस्या का समाधान गांधीजी के पास था | अगर भारत की समस्या का समाधान चाहिए तो गांधीजी के दर्शन को समझना ही होगा|
अंत में-
सरकार को.कम से कम इस फेसबुक पर राष्ट्रपिता के अपमान को रोकने के लिए कुछ करना चाहिये और राष्ट्रपिता के आलोचकों का ये कर्त्तव्य है की अगर इस पोस्ट में कोई त्रुटी हो तो उसे सप्रमाण सामने लाये|
अनूप शुक्ला